tag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post3683899907841370120..comments2024-03-18T19:54:42.059-07:00Comments on कड़वी बाते , लेकिन सच्ची बाते : दुर्गा चंडी नहीं, “…” थी, उसकी पूजा क्यों करें बहुजन?Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04622328312114544967noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-75838289743432621282016-12-29T03:02:02.254-08:002016-12-29T03:02:02.254-08:00Jo insaan hamaare shri raam ko gaali de wah insaan...Jo insaan hamaare shri raam ko gaali de wah insaan nischit hi muslmaan ho sakta h kyonki ki koi arya Hindu toh shri raam ko gaali de nhi sakta or muslmaan sirf murhk hote HaiAmithttps://www.blogger.com/profile/00644076309245427969noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-26850154854117613282011-10-28T22:02:46.017-07:002011-10-28T22:02:46.017-07:00दण्डकारक क्षेत्र में शिव उपासक बैतूल जिले के
गांव...दण्डकारक क्षेत्र में शिव उपासक बैतूल जिले के <br />गांव - गांव में पूजे जाते हैं मेघनाथ रावण एवं कुंभकरण<br /><br />बैतूल: आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बैतूल जिले के प्राचिन गावों में राम को नहीं बल्कि मेघनाथ को हर साल पूजा जाता हैं। चैतमास में होलिका दहन के दुसरे दिन मेघनाथ , रावण , कुंभकरण की पूजा होती हैं। इन तीनो महाबली की पूजा के बाद से गोण्डी फागुन जतरा शुरू हो जाती हैं जो पूरे सवा महिने चलती हैं। इस पूजा के पीछे की कहानी कई युगो पुरानी हैं जिसके अनुसार रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ ने अपने अराध्य भगवान शिव की उपासना इसी दण्डकारण क्षेत्र में करते हुए अनेक सिद्धी प्राप्त की थी। महाबली मेघनाथ ने अपने बाहुबल का उपयोग इस क्षेत्र की दो प्राचिन नदियों नर्मदा एवं ताप्ती की दिशा बदल कर दिखाया था। आज भी पश्चिम मुखी मां नर्मदा एवं सूर्यपुत्री ताप्ती दो अलग - अलग स्थानो पर पूर्व की ओर बहती चली आ रही हैं। इस क्षेत्र की ग्रामीण जनता शिव को अपने बड़े देव के रूप में तथा मेघनाथ को अपने राजा के रूप में पूजती चली आ रही हैं। दुसरे राज्यों के लोगो के इस क्षेत्र में आकर बस जाने के बाद भी मेघनाथ पूजा बंद नहीं हो सकी हैं जबकि अब तो गांव - गांव में मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जगत जननी मां सीता एवं शेषावत्तार अनुज लक्ष्मण तथा पवनपुत्र हनुमान के मंदिर बन चुके हैं। गांवो में अखंड रामायण के पाठ तक शुरू हो चुके है लेकिन इन पूजा एवं पाठ में मूल आदिवासी समाज की उपस्थिति हमेशा से ही नगण्य रही हैं। आज भी इस जिले के प्राचिन मकानो में कुलदेव , ग्राम देव, पितृ देव, और मेघनाथ के घर के पूजा स्थलो की दिवारो पर चित्र बनाएं जाते हैं। अपने राजा के रूप में आदिवासी समाज हर पूजा एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमो में मेघनाथ को ही पूजते हैं। आज भले ही शहरो में रावण , कुंभकरण एवं मेघनाथ के पुतले चलते हो लेकिन जिले के आदिवासी बाहुल्य गांवो में रावण कुंभकरण एवं मेघनाथ का न तो वध होता हैं और न उनके पुतले जलाए जाते हैं। रामलीला का मंचन एवं अखंड रामायण का पाठ केवल गैर आदिवासी बाहुल्य गांवो में होता हैं। बैतूल जिले में यूं तो आदिवासी एवं गैर आदिवासी बाहुल्य गांवो में मेघनाथ की स्थापना एवं पूजन का कार्यक्रम चैत मास के प्रथम सप्ताह से शुरू हो जाता हैं। मेघनाथ की पूजा के पीछे की एक कहानी यह भी हैं कि रावण का राज्य चित्रकुट के बाद से शुरू हो जाता हैं। रावण की पत्नि मंदोदरी मंदसौर की रहने वाली थी जो कि राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित प्राचिन शहर हैं। वर्तमान समय में नर्मदा के एवं ताप्ती के पूरे क्षेत्र में जिसे विध्यं एवं महकौशल तथा सतपुड़ाचंल कहा जाता हैं में सबसे अधिक बसने वाली जनजातियों में आदिवासी , कोरकू, बैगा, भील आते हैं वे सभी रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा करते हैं। छत्तिसगढ़ से रामटेक , बैतूल और दक्षिण तक में रावण के पुत्र मेघनाथ का साम्राज्य था। इतिहासकार एवं प्राचिन वेदो के जानकारो के अनुसार आज भी आदिवासी समाज की पूजा और अन्य सामाजिक रीति रिवाज दानवो से मिलते जुलते हैं। मांस ,मदीरा से शुरू होने वाले हर कार्यक्रम में आज भी आदीवासी शिव उपासना और अघोरी साधना का पालन करते हैं। तंत्र - मंत्र एवं नर एवं पशु बलि इनकी पूजा के प्रमुख आकर्षक रहे हैं। बैतूल जिले में इस समय यदा-कदा ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जिसके अनुसार पूरा क्षेत्र ही स्त्री प्रधान रहा हैं। बैतूल जिले में हर वर्ष होने वाली मेघनाथ पूजा को देखने के लिए लोग दूर - दूर से आते हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-16143685205948634452011-10-28T21:54:46.392-07:002011-10-28T21:54:46.392-07:00बैतूल जिले के गांवों में आज भी पूजे जाते हैं मेघना...बैतूल जिले के गांवों में आज भी पूजे जाते हैं मेघनाद<br />22/03/2011 Filled under SCN NEWS INDIA, एससीएन न्यूज इंडिया/कृष्ण कान्त आर्य <br /><br /><br />दक्षिण भारत में कुछ लोग ही लंकाधिपति राजा रावण को पूजते हैं, लेकिन मध्य भारत में गांव-गांव में आदिकाल से रावण पुत्र मेघनाद के पूजन की परंपरा चली आ रही है। चैत कृष्ण प्रतिपदा से एक पखवाडे तक बैतूल जिले के ग्रामीण अंचलों में रावण के पुत्र मेघनाद का पूजन कर मेला लगाया जाता है। ६०-७० फीट लंबे दो खंबे लगाकर एक को मेघनाद और दूसरे को सुलोचना मानकर पूजा की जाती है। बैतूल जिले के शहरों से लेकर आदिवासी अंचलों तक दर्जनों गांवों में मेघनाद को पूजने की परंपरा आज भी चली आ रही है।वीओ- बैतूल जिले के ग्रामीण अंचलों में मेघनाद का मेला जतरा के नाम से मशहूर है। मेले का शुभारंभ रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा के साथ-साथ होलिका के षडयंत्र से प्रहलाद के जीवित बचने की खुशी में किया जाता है। बैतूल में टिकारी क्षेत्र में वर्षों से परम्परागत रूप से जतरा का आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के बडे बुजुर्ग बताते है कि पूर्वकालीन युग में माँ नर्मदा के इस पार रावण का राज्य था, वहीं नर्मदा के उस पार राम राज्य था। कालान्तर में यहां बहने वाली पवित्र पावनी सलिला नदी मां ताप्ती के किनारे रावण के पुत्र ‘मेघनाथ के द्वारा कठोर तपस्या किए जाने के प्रमाण भी भारतीय प्राचीन धार्मिक गं*थ ‘रावण संहिताÓ में मिलते है। कहा जाता है कि जब मेघनाथ ताप्ती के किनारे तपस्यारत थे तब यहां के आदिवासियों ने तपस्यारत मेघनाथ से भयभीत होकर उसे अपना देवता स्वीकारा। तभी से इस सतपुडांचल में मेघनाथ की पूजा का सिलसिला जारी हुआ।<br /><br />कहा जाता है कि बैतूल जिला दंडकारण्य क्षेत्र में सम्मिलित था। यहां रावण के पुत्र खर-दूषण देख-रेख करते थे। मध्य भारत में मेघनाद का राज्य हुआ करता था जिससे उन्हें पूजा जाता है। उन्होंने बताया कि इस दिन मेघनाद की पूजा करने वाले पर वे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। खंबों पर गेरूआ पोतकर उसे मेघनाद और सुलोचना माना जाता है। गौधूली बेला में नारियल चढाकर मेघनाद की पूजा की जाती है। साथ ही मेला भी लगाया जाता है। खंबे की लकडी पुरानी होने पर जंगल से दूसरा पेड काटा जाता है। इसके लिए वन विभाग द्वारा लिखित परमिशन भी दी जाती है। मेले में आने वाले श्रद्वालुओं का विश्वास है कि मेले में मांगी गई मनोकामना पूरी होती है। सालों से मेघनाद की पूजा करते आ रहे भागा भगत का कहना है कि वह परंपरा से जीवन भर से पूजा कर रहा है। बैतूल जिला मुख्यालय पर ही सौ वर्षो से मेघनाथ पूजा होती आ रही है। ये आदिवासियों का मेला होता है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-21715905957009987722011-10-19T06:05:13.282-07:002011-10-19T06:05:13.282-07:00Thanks for appreciate Siddharth jiThanks for appreciate Siddharth jiAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/04622328312114544967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-44172488702684753762011-10-19T03:49:39.692-07:002011-10-19T03:49:39.692-07:00sader namo buddhay jai bhim
PREM KUMAR MANI JI
...sader namo buddhay jai bhim<br /><br />PREM KUMAR MANI JI<br /><br />good work all the bestsiddharth_358https://www.blogger.com/profile/15666595930286283578noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-13016924602212217832011-10-13T05:49:02.235-07:002011-10-13T05:49:02.235-07:00बिलकुल ठीक संदीप जी.......बिलकुल ठीक संदीप जी.......Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04622328312114544967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-13368544662798100022011-10-13T02:19:58.201-07:002011-10-13T02:19:58.201-07:00ठीक है आगे से सिर्फ़ और सिर्फ़ सुधीर ही ठीक रहेगा,...ठीक है आगे से सिर्फ़ और सिर्फ़ सुधीर ही ठीक रहेगा,<br /> राम-राम गया तेल लेने?SANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-57047292311411680382011-10-13T01:22:27.900-07:002011-10-13T01:22:27.900-07:00संदीप जी..........राम राम नाम की गाली ना देसंदीप जी..........राम राम नाम की गाली ना देAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/04622328312114544967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8385413891488081512.post-86770549690451949582011-10-12T04:35:11.851-07:002011-10-12T04:35:11.851-07:00सुधीर जी राम-राम,
आज आप के लेख से बहुत ही काम की ज...सुधीर जी राम-राम,<br />आज आप के लेख से बहुत ही काम की जानकारी मिली है, आपका बहुत आभारSANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.com